हिंदू त्योहारों को कमतर आँकने की भूल !
कुछ दशकों से ये देखने मे आया है की हिंदु त्योंहारों, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं पर पश्चिमी देशों का घोर आघात हुआ है। पहले तो भारत के लोग इसका विरोध करते थे किंतु २ दशक से यह देखने को मिल रहा है की भारत के युवा हिंदु ही पश्चिमी लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमारी मान्यताओं को दकियानूस एंव अंधविश्वास मानकर उसका न केवल विरोध कर रहे हैं बल्की बडी तेजी से पश्चिमी सभ्यताओं की तरफ मुड भी रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आनेवाले कुछ समय मे भारत से हमारी महान परंपरा और हिंदुत्व ही समाप्त हो जायेगा। आज हमे रामायण और महाभारत जैसे कालजयी गाथा के कुछ गिने चुने नाममात्र ही जानकार मिलते हैं और उनमे भी मतभिन्नता है। हमारे पुराणों, ग्रंथों और ज्ञान पर वामपंथरूपी दिमक लग चुकी है जिसके फलस्वरूप अधिकांशत: हमारे सामने बनावटी ग्रंथ हैं और जिनको पढकर भी हमारे मन में संस्कार नहीं बल्की अपने ही पूर्वजों के ज्ञान पर शंका उत्पन्न होती है। पहले हमारे महान ग्रंथालय को मुगलों ने नष्ट किया फिर अंग्रेजों ने उनमे भ्रम डालकर हमको भरमाया और अंत मे वामपंथियों ने उन ग्रंथों मे सनातन पर आघात की दृष्टी से कई बनावटी तथ्य जोडकर हमारी युवा पीढीयों के सामने प्रस्तुत किया। आज स्थिती इतनी भयानक है की हमें खोजने से भी ग्रंथों की मूल प्रती नहीं मिलती और हम वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास, भूगोल और विज्ञान पढने को मजबूर है। वामपंथियों ने अंग्रेजो और कांग्रेसियों के साथ मिलकर भारतियता, हिंदुत्व और हमारी सभ्यता को इतना घृणित बनाकर हमारे विद्यालय के पाठ्यक्रम में डालकर हमें पढाया की जिसे पढ़कर आज हम में से कईयों को स्वयं को भारतिय बोलने मे भी शर्म आती है।प्रस्तुत चित्र एक विद्यालय के पुस्तक से लिया गया है जिसमे ज्ञ से ज्ञानी पढ़ाने के लिए जिस चित्र में कथित ज्ञानी का चित्र बच्चों को दिखाया जा रहा हैं वो एक बिना मुँछोंवाला दाढ़ीधारी कठमुल्ला है। आज से लगभग १५ साल पहले तक हमने अपनी पुस्तक में ज्ञ से ज्ञानी के रूप में ऋषि की तस्वीर देखी थीं किन्तु अब हमारे बच्चों को ज्ञ से ज्ञानी के रूप में मौलवी दिखाया जा रहा है। पहले ही बॉलीवुड ने पुजारियों को "हवस का पुजारी " बनाकर हमें भरमाया और अब यदि कोई बचपन से सेकुलरता का जहर हमारे बच्चों की नसों में डाल रहा हो तब तो हो लिया राष्ट्र निर्माण !!
आज हमारे बीच ऐसे कितने होंगे जिन्होंने गीता पढी होगी ? कितने होंगे जिनको गायत्री मंत्र, हनुमान चालिसा या महामृत्युंजय मंत्र आता होगा ? जवाब लगभग ना ही होगा !
इस मकर संक्राँति के दिन कई हिंदुओं ने इस त्योंहार का बहिष्कार केवल यह कहकर किया की, "कुछ घंटों के आनंद के लिए हम पतंग के माँजों मे पंछियों को फँसकर मर जाने का कारण नहीं बन सकते।" मैं जहाँ रहता हुँ वहाँ पर बाकायदा एक स्टील व्यापारी ने मंच बनवाकर लाऊड स्पीकरों पर लोगों से पतंग ना उडाने की अपील की और हद तो तब हो गई की उनका साथ देने के लिए कुछ भगवाधारी साधु भी मंच पर उपास्थित थे। मैं ऐसे दुष्टों से ये पुँछना चाहुँगा कि, “क्या आप बकरी ईद मे होनेवाले लगभग ३ से ४ करोड जानवरों की नृशंस हत्या पर भी ऐसी हिमाकत कर सकते हों ?” यदि नहीं तो हिंदुओं के त्योंहारों पर ऊँगली क्यों करते हों ? हिंदु Soft Target है इसलिए उसपर जीवदया का चुतियापा और अन्य समुदायों के कुकर्मों पर चुप्पी। ये बहुत ही निंदनिय एंव दुस्साहस भरी समाजसेवा है और भविष्य में इसका बहुत घातक परिणाम हमारे बच्चों पर ही पड़ने वाला है। खैर आप अपना कार्य करें और हम हिंदु त्योंहारों की साख बचाने का अपना कार्य करेंगे।
आईयें देखते और समझते हैं की किस तरह ईसाई त्योंहार Christmas और New Year मनाना अंधविश्वास तथा बेवकुफी ही है और मकरसंक्राँति एक महान एंव वैज्ञानिक कसौटी पर प्रमाणित त्योंहार है।
सर्वप्रथम Christmas की बात करते हैं। लगभग डेढ दो हजार साल पहले ईसाइयों ने रोमन्स के पारंपरिक त्योंहार "रोमांस" जो आज भी वें लोग 25 दिसम्बर को एक त्योहर के रूप में मानते है जिसे “डईस नातालिस सोलिस इन्विक्टी” कहते हैं और जिसका अर्थ "अपराजी सूर्य का जन्म दिन” होता है। तो पहले ईसाइयों ने Christianity को रोमन्स पर थोंपने के लिए Christmas के लिए इसी दिन को चुना और अपने इस त्योंहार को पहले तो एक काल्पनिक किरदार Santa Claus को बच्चों मे प्रसिद्ध किया और फिर आगे चलकर वहीं बच्चे जब प्रौढ हुए तब यह प्रथा एक Natural Human Mentality Cycle के तहत उनके बच्चों और फिर उनसे उनके बच्चों तक विष की भाँती पहुँचा। गौरतलब है की महान सनातन संस्कृती के उपासकों द्वारा लाखों साल पहले से मनाया जाने वाला पर्व मकर संक्राँति जो की "सर्दी के प्रकोप पर सूर्य देव के उष्णता के आशिष का पर्व है " और जो "रात की तुलना मे दिन बडे होकर पृथ्वी के सजिवों के लिए प्राणदायी सिद्ध होता है" तथा "जिसको मनाकर हम ना केवल पृथ्वी पर जीवन की संभावना की खुशिया मनाते हैं बल्की सूर्य के इस परोपकार के लिए उसकी पूजा कर उसकी इस कृतज्ञता के लिए आभार भी प्रकट करते हैं।" भारत मे Christmas की शुरूवात ही भारतियों को पाश्चात्यिकरण की तरफ मोडकर उन्हें पंगू बनाने के लिए की गयी थीं ताकी आसानी से भारतियों को मानसिक रूप से अंग्रेज बनाकर उनपर राज किया जा सकें। आज अंग्रेजियत का आलम ये है की स्वतंत्रता के ७० साल बाद भी हम पश्चिमों के इस हद तक मानसिक गुलाम हो चुके हैं जितना गुलामी के दौर मे भी नहीं थे। गुलाम भारत मे भी लोग हिंदु पर्वों को वैज्ञानिक दॄष्टिकोण से देखते थें व अंग्रेजों के अवैज्ञानिक दकियानूसी परंपराओं का विरोध करते थें । अंग्रेज ये समझ चुके थे कि, "भारत पर यदि राज करना है तो महान भारतिय संस्कृती पर वार करना होगा। चूँकि युद्ध से भारत को गुलाम तो बनाया जा सकता है लेकिन वो गुलामी अधिक दिनों तक नहीं चलनेवाली और भारत को गुलाम बनाकर भी उनकी भारतियता पर विजय नहीं पाया जा सकता" अंग्रेजों को ये पता चल चूका था की भारतीयों को लम्बे समय तक गुलाम बनाना है तो उनकी जडों पर आघात करना होगा। इसलिए उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से भारतिय संस्कृति पर अपने त्योंहारों को थोंपना शुरू किया। अंग्रेजो ने वामपंथियों के साथ मिलकर ऐसा मकडाजाल बुना जिसका भारतियों पर दुरगामी प्रभाव पडा।
आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी पूरा भारत हिंदु त्योंहारों के प्रति उतना उत्सुक नहीं दिखता जितना अंग्रेजों के त्योंहारों के प्रति दिखता है। भारतिय युवा Christmas और 31st December की तैय्यारी हफ्तों-हफ्तों पहले से शुरू कर देता है। युवाओं को ये तक नहीं पता की जिस अंग्रेजों के त्योंहार के प्रति वें इतने लालायित है वो त्योंहार हमारे पूर्वजों की लाशों पर खडा किया गया था और जो पूर्णत: In Logical, Non Scientific और अंधविश्वास से भरा पडा है। दुसरी तरफ जिन त्योंहारों को हमारे पुर्वजों ने आदिकाल से सँजोंकर रखा है और जो पूर्णत: वैज्ञानिक एंव मानव कल्याणकारी है उसके प्रति युवाओं का उदासिनता भरा रवैया है। इस बात मे कोई दो राय नहीं की, “केवल २५० वर्षों मे Christmas जैसा एक दकियानूसी त्योंहार हजारों-लाखों बर्ष पुराने मकर संक्राँती, उत्तरायण और पोंगल जैसे वैज्ञानिक त्योहारों पर भारी पडने का कारण केवल हमारी मूर्खता ही है।”
अब आते हैं इसपर की किस तरह अंग्रेजों का New Year यानी की 31st December भी एक In Logical और अंधविश्वास ही है और उसको मनानेवाले हिंदू महामुर्ख !
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पश्चिमी सभ्यता के विरोध के मुख्य कारण :
आप क्या चाहोगे....पतंग उड़े या इज्जत ?
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