वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता ?
तुम्हें मंज़ूर है झुकना झुकाओ सर मजारो पर ,
मगर मैं तो किसी चौखट, किसी दर पर झुकाने सर नहीं जाता ?
वतन के रहनुमा बनकर वतन के साथ गद्दारी,
तुम्हारा सच है जग-ज़ाहिर, कहा खुलकर नहीं जाता ?
भरोसा बाजुओं पर है मुझे अपनी हमेशा से,
चढ़ाने मैं मज़ारों पर कभी चादर नहीं जाता ?
तुम्हारे मस्ज़िद से मयख़ाना बहुत बेहतर है,
चलाया पीठ पर यारों यहाँ ख़ंजर नहीं जाता ?
तुम्हारी ही दुआएं थी जो कृष्णा जी लिए कुछ दिन,
तुम्हारी बद्दुआ होती तो कब का मर नहीं जाता !
✍️कृष्णा पांडे
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