

मुझ से पिछे आए हुए ३-४ लोगों के बाद जब मैं जाने लगा तब तक और ३ लोग वहाँ पेशाब करने पहुँचे और मैं वहाँ से चल दिया। जब मैं प्लेटफार्म नंबर २-३ से सिढियाँ चलकर ब्रिज पर चढा और Indicator की तरफ देखा तो पाया की भाईंदर ट्रेन जिसे पकडने की मैं १००% तैयारी मे था उस ट्रेन को आने मे अभी काफी समय था और सोचा तब तक क्यों ना ब्रिज पर ही टाईम पास किया जाए और इसलिए मैं वहीं ब्रिज पर खडा हो गया।
मुँबई मे रोजगार Main Bombay की तरफ है इसलिए सुबह के वक्त विरार से चर्चगेट की तरफ भीड अधिक होती है और रात मे सभी काम से घर की तरफ लौटते हैं इसलिए चर्चगेट से विरार की तरफ भीड अधिक होती है। विरार की तरफ जानेवाली ९०% सभी Slow ट्रेने प्लेटफार्म नंबर १ पर से ही गुजरती थी (वर्तमान समय की ठिक से जानकारी नहीं क्योंकी अब मैं ट्रेन कम ही इस्तेमाल करता हुँ )। तो हुआ युँ की मैं ब्रिज पर लोहे की पाईप व छडों से बने सुरक्षा दिवार पर दोनों कोहनी टिका कर खडा था और न जाने क्युँ मैं भीडभरे प्लेटफार्म नंबर १ की तरफ ना देखकर सुमसान प्लेटफार्म नंबर २-३ की तरफ ही मुँह करके खडा था जहाँ से मुझे प्लेटफार्म नंबर २-३ का लगभग आधा भाग दिखाई दे रहा था। मेरे कहने का मतलब ये है की यदि कोई व्यक्ती प्लेटफार्म नंबर २-३ से कहीं भी जाना चाहे तब या तो वो मेरी तरफ वाली ब्रिज पर आयेगा या फिर मेरी दृष्टी की परिधी सीमा के अंतर्गत आनेवाले प्लेटफार्म से होकर ही मेरे सामनेवाले ब्रिज पर जाते हुए मेरी आँखों से ओझल होगा किंतु हर स्थिती मे कोई भी व्यक्ती मुझे दिखेगा जरूर, फिर भले ही थोडे ही समय के लिए व दूरी तक दिखे पर दिखेगा तो वह जरूर।
अब हुआ युँ की जब मैं ब्रिज पर खडे रहकर शौचालय की तरफ बिना किसी विशेष कारण के नजरे दौडा रहा था तब मेरे बाद शौचालय मे गये ३ व्यक्ती छण-छण भर के अंतराल के बाद बाहर निकले व मेरी तरफ वाले ब्रिज की तरफ बढने लगे। अब मुझे अचानक ये ध्यान आया की वो मुझ से पहलेवाला व्यक्ती कहाँ गया....? फिर मैंने सोचा “कहीं चला ही गया होगा। मुझ से भी पहले से आया था तो अब तक थोडे ही रूकेगा और जब मैं ब्रिज की सीढियाँ चढ रहा था तब शायद दुसरी तरफ चला गया होगा। ” बस मैं इन्ही विचारों मे मग्न होकर पूरे प्लेटफार्म नंबर २-३ पर नजरे दौडाने लगा की इतने मे शौचालय से शायद वही व्यक्ती बाहर निकला जिसके बारे मे मैं सोच रहा था। क्या ये वहीं था या कोई दुसरा व्यक्ती...? शायद वो ही व्यक्ती है या फिर नहीं। बस इसी उधेडबुन मे मैं यह कल्पना कर बैठा की “ कोई चौथा और भी मेरे बाद पेशाब करने गया होगा और उस समय मैंने ध्यान नहीं दिया होगा ” , किंतु मैंने दिमाग पर थोडा जोर डाला और निष्कर्ष निकाला की जब मैं शौचालय से निकला तब तो प्लेटफार्म से लेकर सीढि और ब्रिज तक कोई व्यक्ती सामने से नहीं गुजरा और जो भी थे उनमे से केवल वो पहले वाला व्यक्ती मुझ से पहले आया था और बाकी के सभी व्यक्ती मेरे बाद आये थे। अंतिम बार जब मैं शौचालय से बाहर आया तब उस संदिग्ध व्यक्ती के अलावा केवल ३ ही व्यक्तियों को शौचालय मे छोडकर बाहर निकला था और चुँकी वहाँ से कुछ ही छणों मे मैं ब्रिज पर चढा तो इतने मे मेरे पीछे से प्लेटफार्म की विपरित दिशा से यदी कोई व्यक्ती आता भी तो मैं शत-प्रतिशत उसे ब्रिज पर चढने के बाद देख ही लेता। मैं इन सारी उधेडबुन मे था ही की ३ व्यक्तियों मे से पहले व्यक्ति ने ब्रिज की सिढियों पर चढना शुरू किया फिर दुसरा और फिर तीसरा व्यक्ती भी ब्रिज पर चढने लगा। मेरा सोचना, शंका करना, अपनी ही शंका को वहम समझना, फिर चीजों को समझने का प्रयास करना, तीनों व्यक्तियों का बारी बारी से सीढियाँ चढना उस संदिग्ध व्यक्ती का शौचालय से बाहर आकर मेरी तरफवाले ब्रिज की तरफ उन तीनों व्यक्तीयों के पीछे से बढना ये सब कुछ मिनटों मे फटाफट और एक साथ घटित हो रहा था। यदि समय लगा तो सबसे ज्यादा लगनेवाला समय केवल मेरे शौचालय मे पेशाब का समय था तथा उसके पहले व बाद की सारी घटना सामान्य गति से ही हुई थी। अब हुआ युँ की तीनों व्यक्ती ब्रिज पर आनेवाली सीढियाँ चढ रहे थे किंतु सीढियों पर ऊपर से नीचे तक के बीच के हिस्सों में पतरे की चादर Nut-Bolt व Welding से ताडी हुई थी जिससे मुझे तीनों व्यक्ती सीढियों पर चढते समय के शुरूवात के सीरे से ही दिख सकते थे किंतु सीढियों के मध्य पतरों की वजह से उनको देख पाना असंभव था और पुन: ब्रिज की तरफ सीढियों के अंतिम छोर पर आते हुए दुसरे सीरे पर ही वें दिखाई देने वाले थे। तो तीनों व्यक्तियों मे अंतिम तीसरा व्यक्ती पहले ब्रिज पर आया क्योंकी वो छरहरा व फुर्तिला तो था ही और शायद उसे प्ल्टफार्म नंबर १ पर आनेवाली बोरीवली की ट्रेन पकडनी थी और बाकी के दोनों व्यक्तियों के हाव-भाव देखकर यही लग रहा था की उन्हें भी मेरी तरह भाईंदर की ट्रेन पकडनी थी जिसे आने मे अभी १५-२० मिनट शेष थे और शायद इसलिए वें दोनों फुर्सत मे और आराम-आराम से सीढियाँ चढ रहे थें। अब तक वे दोनों व्यक्ती सीढि के एक सीरे मे पतरे की चादर मे समा तो गए थे किंतु सीढियों के दुसरी तरफ के ब्रिजवाले सीरे से बाहर नहीं निकले और वो संदिग्ध शौचालय वाला व्यक्ती भी अब तक सींढियों के नीचे के सीरे मे समा चुका था। उसे बार-बार संदिग्ध इसलिए कह रहा हुँ क्योंकी शौचालय मे मुझ से पहले उसका होना, सबसे अंत मे निकलना आदि कारण तो थे ही किंतु पाठकों को केवल इतने से कारण के चलते उस व्यक्ती के संदिग्ध होने की बात कुछ हजम नहीं हो रही होगी तो आगे उसकी संदिग्धता का कारण भी आपको पता चलने ही वाला है।
वो संदिग्ध व्यक्ती शायद वहीं सीढियों पर बैठ गया था, ऐसा इसलिए कह रहा हुँ क्योंकी अब तक बाकी के दोनों व्यक्ती भी ऊपर आ चुके थे और मेरी तरफ से गुजरते हुए प्लेटफार्म नंबर १ पर जानेवाली पास की दुसरी सीढियों से नीचे की तरफ चल पडे थे और इसलिए अब मेरी दिलचस्पी उस संदिग्ध व्यक्ती पर कुछ ज्यादा ही केंद्रित हो गई और मैं उस संदिग्ध व्यक्ती की बाट जोहने लगा किंतु अब उसके सीढि के एक सीरे मे घुसे हुए काफी समय बीत चुका था और अब तक वो दुसरे सीरे से होकर ब्रिज पर भी नहीं आया था। मेरी भी ट्रेन को ७-८ मिनट बाकी था तो मैंने दोबारा प्लेटफार्म २-३ पर जहाँ तक नजरे जा सकती थी वहाँ तक नजरे दौडाई और फिर बेवजह ब्रिज के ऊपर उन सीढियों की तरफ चहलकदमी करता हुआ पहुँचा जहाँ से प्लेटफार्म नंबर २-३ पर शौचालय की तरफ रास्ता जाता था और जहाँ से होकर मैं और बाकी के तीन व्यक्ती ब्रिज पर आये थे। मैं देखकर हैरान रह गया 😳 की जिस संदिग्ध व्यक्ती को मैं सोच रहा था की “ वह पतरों के चादर के पीछे सीढियों पर ही बैठा होगा ” पर वहाँ तो कोई भी नहीं था। मेरी समझ मे अब कुछ भी नही आ रहा था और मैं वहाँ से सीधे ब्रिज पर से होते हुए तेजी से प्लेटफार्म नंबर १ की तरफ जानेवाली सीढियों से नीचे उतर गया और ट्रेन का इंतजार करने लगा। उस समय मुझे वो आखिर के दोनों व्यक्तियों मे से एक व्यक्ती मिला जो मेरे साथ भाईंदर स्टेशन तक मेरी ही ट्रेन के कोच मे आया और अंत में हम दोनों भाईंदर स्टेशन पर उतरे। भाईंदर मे ट्रेन ३ नंबर की प्लेटफार्म पर आई और भाईंदर पहुँचने पर भी मैं उस व्यक्ती पर इसलिए नजर रख रहा था क्योंकी मेरा दिमाग चकराया हुआ था। ट्रेन मे हम आगे की तरफ के कोच मे चढे थे। मेरा घर उस तरफ से नजदिक था जहाँ पर ट्रेन के अंतिम कोच के चर्चगट के छोरवाला ब्रिज था, तो मैं प्लेटफार्म पर उतरू कहीं भी किंतु स्टेशन से बाहर प्लेटफार्म के अंतिम चर्चगेट के छोरवाले ब्रिज पर से ही ईस्ट की तरफ जाता हुँ। संयोगवश वो व्यक्ती भी पीछे की तरफवाले ब्रिज की ओर ही जा रहा था जो की काफी दूर था किंतु मैने सोचा की मेरी तरह उसे भी वही सुविधाजनक होगा। मैं उसके पिछे-पिछे चल रहा था और सारी घटनाओं से विस्मित व कुछ डरा हुआ भी था। हम दोनों ब्रिज चढ चुके थे और हम अब सीढियों से ऊपर आ चुके थे। मुझे तो ब्रिज से बाई तरफ जाकर ईस्ट मे जाना था और वो दाई तरफ मुडकर जाने लगा। मैंने मुडकर देखा तो वो दुसरा व्यक्ति ब्रिज से हेते हुए प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ जा रहा था। शायद उसे और भी आगे जाना था इसलिए दुसरी विरार की ट्रेन पकडने के लिए प्लेटफार्म १ पर गया हो जैसा की मैने कहानी के कुछ शुरूवाती हिस्से मे कहाँ था की कई लोग अक्षमता के कारण विरार लोकल ना पकडकर भाईंदर लोकल पकडते है और फिर वहाँ से ट्रेन बदलकर विरार लोकल पकडते हैं। खैर मैं स्टेशन से बाहर निकला और घर चला गया। दुसरे दिन काम पर पहुँचकर मेरे एक बेहद करीबी और खास स्टाफ प्रफुल को सारी घटना बताई तो उसने मेरी बात मजाक मे ली और मेरी खिंचाई करने लगा। मैंने भी इस बात को ज्यादा गंभिरता से नहीं लिया और सोचा की बात को समझने मे मुझसे ही कोई चूक हुई होगी। कुछ दिन जाते-जाते मैं इस घटना को पूरी तरह भूल चुका था किंतु आनेवाला समय कुछ ऐसा घटनेवाला था जिसकी वजह से मैं ये कहानी लिख पाया हुँ।
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